भगवान अपने प्रिय भक्त को संकट में देखकर रह नहीं पाते। वह उसके उद्धार के लिये नाना प्रकार के उपक्रम कर उसे विषय-भोग से मुक्त कर देते हैं। जिस पर उनकी कृपा होती है वह जीव अमर हो जाता है।अहंकार, भक्ति में सबसे बडा बाधक है। जीव के अहंकार का कारण चाहे वस्तु हो या व्यक्ति, भगवान उसे नष्ट कर देते हैं। इन्द्र को भी अहंकार हुआ। बृजवासियोंद्वारा पूजा नहीं किये जाने से नाराज इन्द्र ने अति वृष्टि की। इन्द्र का अहंकार नष्ट करने के लिए भगवान ने गोवर्धनउठाकर बृज के लोगों की रक्षा की। इन्द्र को अपनी लघुताका बोध हुआ और वह भगवान के चरणों में गिर पडा। श्रीकृष्ण के चरणों में गिरने वाले संसार का राजा बनते हैं। अति महत्वाकांक्षा व अहंकार दोनों ही जीव के लिए घातक है। धर्म कहता है कि मनुष्य को अपने सामर्थ्थयके अनुसार भगवान की सेवा में जुटना चाहिए।
8 टिप्पणियां:
सुन्दर विचार...
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सुशील गंगवार
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सुन्दर विचार...पढवाने के लिए आभार.
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निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
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जय हो
गणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें ..स्वीकार करें
बहुत ही अच्छी और विचारणीय प्रस्तुति..सुंदर जीवन सन्देश.
बुलंद हौसले का दूसरा नाम : आभा खेत्रपाल
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