चली चर्चा एक बार कवित्व पर
कि ‘कविता क्या होती है?
किसी ने कहा कि
‘कविता’ कवि का भाव है
‘कवि के विचारों का
क्रमात्मक बहाव है’
किसी ने सराहा कि
‘कवि अपने दर्द को
कागज पर उकेरता है’
अपने खुशी भरें पलो को
अंलकारों और रसों से संवार कर
लेखनी की उन्मत् चाल से
शब्दों को वाक्यों में पिरोकर
कागज पर सहेजता है
वह जो समाज में देखता है
उसे ही ढ़ालकर आइने में
समाज को आईना दिखाता है
कवि अपने कल्पना रूपी पंखो से
लेखनी की थिरकन पर
वहाँ पहुँच जाता है !!
एस. आर. भारती
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर कविता..भारती जी को बधाई.
एक टिप्पणी भेजें