साहित्य और साहित्यकार दोनों एक ही नव निर्माण प्रक्रिया के दो पहलू होते हैं। इस दृष्टि से किसी भी साहित्यकार के कृतित्व के अध्ययन के लिए उसके व्यक्तित्व का अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि सर्जक व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक घटनाएँ जैसे पूर्व संस्कार, बचपन के संस्कार, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक इत्यादि का कलाकार एवं सर्जक के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति अगर साहित्यकार हो तो उसके कृतित्व में किसी न किसी रूप में उसके व्यक्तित्व की झलक स्पष्ट दिखाई दे जाती है। इन स्थितियों के लिये तत्कालीन देश, काल एवं वातावरण की अहम् भूमिका होती है। दुर्गाचरण मिश्र द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ को इसी परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की आवश्यकता है।
33 वर्षीय युवा कृष्ण कुमार यादव भारतीय डाक सेवा के उच्च पदस्थ अधिकारी हैं, कवि हैं, कहानीकार हैं, निबंधकार हैं, बाल साहित्यकार हैं, संपादन कला में भी दक्ष हैं। अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ वह प्रकृति-प्रेमी, पर्यटक, समाजसेवी, स्वाध्याय प्रेमी, संगीत श्रोता, स्नेही मित्र और कुशल प्रशासक भी हैं। उनके लिए साहित्य मात्र उत्सवधर्मिता का परिचायक नहीं बल्कि उसके माध्यम से वे जीवन के रंगों और उसमें व्याप्त आनंद की खोज व अन्वेषण करते हैं। अपने इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण कृष्ण कुमार अपनी जीवन-संगिनी आकांक्षा के वरेण्य बने हुए हैं। बेटी के प्रति वात्सल्य-वर्षण में दम्पति युग्म प्रतिस्पर्धी है। कृष्ण कुमार का व्यक्तित्व पिताश्री की कर्तव्यनिष्ठा, अध्ययन, अभिरुचि, लेखन का अभ्यास, लक्ष्य प्राप्ति हेतु अथक प्रयास तथा सरलमना ममतामयी माँ के उत्सर्ग-परायण अन्तःकरण का सुखद समन्वय प्रतीत होता है। उनका प्रियदर्शन व्यक्तित्व सर्वाधिक आकर्षक एवं सम्मोहक है। प्रसाद जी की पंक्ति याद आती है- हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया उन्मुक्त।
‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ में कृष्ण कुमार के समग्र साहित्यिक कृतित्व का मूल्यांकन किया गया है। विद्वान समीक्षकों ने विभिन्न विधाओं में सृजित श्री यादव की रचनाओं की मुक्तकण्ठ से सराहना की है। उनकी रचनाओं में सामाजिक सरोकारों की प्रतिबद्धता, परिवारिक रिश्तों की मिठास, भारतीय संस्कृति के प्रेरक आदर्श, दलितों-शोषितों के प्रति सहज सहानुभूति, ममतामयी नारी के उदात्त एवं दयनीय जीवन के विविध रूप, बाल-मन की सरलता-तरलता, राष्ट्र की अस्मिता-रक्षा हेतु प्राणोत्सर्ग करने वाले क्रान्तिवीरों के प्रति प्रणति, भ्रष्टाचार को नकारने का उद्दाम आक्रोश, उपलब्धियों की बुलन्दियों पर पहुँचने का अदम्य उत्साह और इन सबसे परे उनका मानवतावादी जीवन-दर्शन यत्र-तत्र-सर्वत्र लक्षित होता है। उनकी कविताएंँ, कहानियाँ, निबन्ध, बाल साहित्य, इतिहास लेखन सभी उनकी संवेदनशीलता, वैचारिक उत्कर्ष, ओजपूर्ण मनस्विता एवं मानवतावादी जीवन-दर्शन का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। पुस्तक के सुधी संपादक साहित्यकार दुर्गा चरण मिश्र के द्वारा कृष्ण कुमार यादव के बहुआयामी व्यक्तित्व पर आधारित मूल्यांकनपरक आलेखों, विद्वतजनों की सार्थक टिप्पणियों एवं श्री यादव की जीवन-गाथा सहेजती अट्ठासी छन्दों में विस्तारित कविता द्वारा इसे पठनीय एवं संग्रहणीय बनाने का प्रयास निःसंदेह सराहनीय है। प्रस्तुत पुस्तक कृष्ण कुमार यादव के प्रति समर्पित महत्वपूर्ण महानुभावों की भाव-सुमनांजलि से सुवासित है।
‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ में कृष्ण कुमार यादव की रचनाओं के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों की सम्मतियाँ उल्लेखनीय हैं। ये सम्मतियाँ उनकी रचनाधर्मिता के साथ-साथ व्यक्तित्व को भी विस्तार देती हैं। पुस्तक की भूमिका में प्रसिद्ध समालोचक सेवक वात्स्यायन लिखते हैं कि कृष्ण कुमार यादव अपने जीवन के अभी पूरे-पूरे तीन दशक ही देख सके हैं कि उनकी मेधा और निष्ठामय श्रम के उदात्त उदाहरण व्यवहारवादी जीवन-दर्शन से लेकर, सिद्धान्त-भूमियों से लेकर भावमय संसार तक प्रस्थित हो उठे हैं। उन्होंने साहित्य-जगत् में भी विविध आयामों में, विविध सोपानों में अपनी प्रतिभा-राशि का आंशिक और समुच्चयित किरण-विकीर्णन प्रस्तुत कर चमत्कृत भी किया है और भावाभिभूत भी। जानेमाने गीतकार व साहित्यकार गोपालदास ‘नीरज‘, कृष्ण कुमार यादव की रचनाओं में बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व संतुलन महसूस करते हंै तो प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित के मत में कृष्ण कुमार के पास पर्याप्त भाव-सम्पदा है, जागृत संवेदना है, सक्षम काव्य-भाषा है और खुला आकाश है। डाॅ0 रामदरश मिश्र का अभिमत है कि कृष्ण कुमार की कविताएं सहज हैं, पारदर्शी हैं, अपने समय के सवालों और विसंगतियों से रूबरू हैं। चर्चित कवि यश मालवीय श्री यादव को उनके विभाग की भावभूमि से जोड़ते हुए लिखते हैं कि वास्तव में अपने रचना-कर्म में कृष्ण कुमार चिट्ठीरसा ही लगते हैं, जीवन और जगत को भावनाओं कल्पनाओं की रसभीनी चिट्ठी इधर से उधर पहुँचाते हुए। डाॅ0 गणेश दत्त सारस्वत उनकी निबंध-कला पर जोर देते हुए कहते हैं कि- कृष्ण कुमार के निबन्ध अनुभूतिपरक हैं, चिन्तन प्रधान हंै तथा दार्शनिकता का पुट लिए हुए हैं इसलिए सर्वस्पर्शी हैं। इससे परे डाॅ0 रामस्वरूप त्रिपाठी श्री यादव की रचनाओं में विमर्शों को खंगालते हुए व्यक्त करते हैं कि-स्त्री-विमर्श का यथार्थ, दलित चेतना की सोच कृष्ण कुमार की कविताओं में वर्तमान का सत्य बनकर उभरी हैं। वरिष्ठ कथाकार गोवर्धन यादव के मत में कृष्ण कुमार की कहानियों में प्रेम की मासूमियत, अन्तद्र्वन्द्व, व्यवस्था की विसंगतियाँ व समसामयिक घटनाओं के बहाने समकालीन सरोकारों को भी उकेरा गया है। आकांक्षा यादव तो रचनाधर्मिता को श्री यादव के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग रूप में देखती हैं। रविनंदन सिंह इसे आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं कि युवा कवि कृष्ण कुमार यादव ने नारी चेतना को आधुनिक संदर्भों से जोड़कर ग्रहण किया है। श्री यादव की रचनाओं पर साहित्यकारों की ही नहीं समाजसेवियों और राजनेताओं की भी दृष्टि गयी है। बतौर केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल-‘क्रान्ति यज्ञ‘ एक पुस्तक नहीं, बल्कि अपने आप में एक शोध ग्रन्थ है।
‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ में कृष्ण कुमार यादव के जन्म से लेकर आज तक के 32 वर्षीय विकास-क्रम को शब्द-शिल्प से सजाया गया है। कृष्ण कुमार की कलम विद्यार्थी जीवन से ही चलने लगी। ‘हम नवोदय के बच्चे‘ बाल गीत से आरम्भ हुआ उनका काव्य सृजन कब और कैसे बढ़ता गया पता ही नहीं चला। कभी कल्पनाओं में, कभी प्रकृति के सौंदर्य तो कभी जीवन की सच्चाईयों व बहुरंगे अनुभवों से गुजरती हुई कविता इलाहाबाद में अध्ययन के दौरान गद्य की ओर भी उन्मुख हुई। नवोदय विद्यालय का अल्हड़ किशोर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान देश-विदेश की गतिविधियों में रूचि लेने वाला जागरूक युवा छात्र बनकर उभरता है। पिताश्री के सपनों को साकार करने हेतु सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में डूब जाता है और अपने आत्म-विश्वास के अनुरूप प्रथम प्रयास में ही सफलता अर्जित कर भारतीय डाक सेवा का उच्चाधिकारी बनता है। साहित्य-सृजन के लिए कलम उठाता है तो अल्पावधि में ही भारत की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में बहार बनकर छा जाता है। जीवन-संगिनी मिलती है वह भी कलम की सिपहसालार। ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्ण कुमार ने जो भी सपना देखा, परमात्मा ने उसे अविलम्ब साकार कर दिया। उनकी बतरस की बाँसुरी से ऐसी मधुर एवं सुरीली स्वर लहरी प्रवाहित होती है कि श्रोता के पास रससिक्त होने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं बचता।
कभी-कभी लगता है जैसे कृष्ण कुमार अपने नाम को सार्थक करने की आकांक्षा से प्रतिपल अनुप्राणित हैं। जीवन और जगत की विसंगतियों से टक्कर लेने की संवेदनशील छटपटाहट है। पुस्तक के संपादक दुर्गाचरण मिश्र जी ने कृष्ण कुमार यादव की रचनाओं के पृष्ठ भी इसके साथ संलग्न कर लिए होते, तो एक नयी काव्य-विधा का ‘कुमार कृष्णायन‘ बनकर तैयार हो जाता। खैर, महाभारत जैसी रचनाएं तो शनैः शनैः अपना आकार-विस्तार प्राप्त करती हैं। अन्त में मैं कृष्ण कुमार यादव के कृतित्व को अपनी भाव-सुमनांजलि अर्पित करते हुए एक श्लोक उद्धृत करने की अनुमति चाहता हूँ।
जयन्ति ते सृकृतिनः रससिद्धाः
यशःकाये जरामरणजं भयम्।।
कृतिः बढ़ते चरण शिखर की ओर सम्पादकः दुर्गाचरण मिश्र, पृष्ठः 148 मूल्यः रू0 150 संस्करणः 2009 प्रकाशकः उमेश प्रकाशन, 100, लूकरगंज, इलाहाबाद समीक्षकः राजकुमार अवस्थी, प्रधानाचार्य (से0नि0), नरवल, कानपुर-209401
6 टिप्पणियां:
के.के. यादव भैया पर केन्द्रित इस पुस्तक की समीक्षा यहाँ पढ़कर हर्षित हुआ. अवस्थी जी ने बड़े ही मनोयोग से इसे लिखा और आपने खूबसूरती से प्रस्तुत किया...बधाई.
के.के. यादव भैया पर केन्द्रित इस पुस्तक की समीक्षा यहाँ पढ़कर हर्षित हुआ. अवस्थी जी ने बड़े ही मनोयोग से इसे लिखा और आपने खूबसूरती से प्रस्तुत किया...बधाई.
Pustak samiksha padhkar khushi hui saath jankari bhi mili achchhe vyaktitv ki.aabhar
बेहतरीन समीक्षा ..के. जी को इस पुस्तक हेतु बधाई.
अगर आप पूर्वांचल से जुड़े है तो आयें, पूर्वांचल ब्लोगर्स असोसिएसन:पर ..आप का सहयोग संबल होगा पूर्वांचल के विकास में..
विस्तार से समीक्षा बहुत अच्छी लगी और यादव जी का व्यक्तित्व प्रभावित कर गया पुस्तक पढने की चाह वलबती वो गयी। कहाँ से मिलेगी ये पुस्तक अगर साथ लिखते तो अच्छा लगता। धन्यवाद।
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