सोमवार, दिसंबर 26, 2011

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा राम शिव मूर्ति यादव को ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली के पंचशील आश्रम, झड़ोदा (बुराड़ी) में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में सामाजिक न्याय सम्बन्धी लेखन, विशिष्ट कृतित्व, समृद्ध साहित्य-साधना एवं समाज सेवा हेतु आजमगढ़ के श्री राम शिव मूर्ति यादव को ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया गया। उक्त समारोह में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने श्री यादव को यह सम्मान प्रदान किया। इस अवसर पर ओड़ीशा, महाराष्ट्र, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, केरल तथा आंध्र-प्रदेश के कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम कर शमा बांधा.

उत्तर प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत्ति पश्चात तहबरपुर-आजमगढ़ जनपद निवासी श्री राम शिव मूर्ति यादव एक लम्बे समय से शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक विषयों पर प्रखरता से लेखन कर रहे हैं। श्री यादव की ‘सामाजिक व्यवस्था एवं आरक्षण‘ नाम से एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। आपके तमाम लेख विभिन्न स्तरीय पुस्तकों और संकलनों में भी प्रकाशित हैं। इसके अलावा आपके लेख इंटरनेट पर भी तमाम चर्चित वेब/ई/ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं और ब्लॉग पर पढ़े-देखे जा सकते हैं। श्री राम शिव मूर्ति यादव ब्लागिंग में भी सक्रिय हैं और ”यदुकुल” (http://www.yadukul.blogspot.com/) ब्लॉग का आप द्वारा 10 नवम्बर 2008 से सतत संचालन किया जा रहा है।

इससे पूर्व श्री राम शिव मूर्ति यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा ‘ज्योतिबाफुले फेलोशिप सम्मान-2007‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ, इलाहाबाद द्वारा ‘भारती ज्योति’ सम्मान, आसरा समिति, मथुरा द्वारा ‘बृज गौरव‘, ‘समग्रता‘ शिक्षा साहित्य एवं कला परिषद, कटनी, म0प्र0 द्वारा ’भारत-भूषण’, अम्बेडकरवादी साहित्य को प्रोत्साहित करने एवं तत्संबंधी लेखन हेतु रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष श्री रामदास आठवले द्वारा ‘अम्बेडकर रत्न अवार्ड 2011‘ इत्यादि से सम्मानित किया है।

भारतीय दलित साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सोहनपाल सुमनाक्षर ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री डॉ॰ फारुख अब्दुल्ला, लोकसभा के उपाध्यक्ष श्री करिया मुंडा एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महामंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे । इस सम्मेलन को सुशोभित करने वाले अन्य मुख्य अतिथियों में अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल एवं चर्चित दलित साहित्यकार डॉ माता प्रसाद, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष श्री पी॰ एल॰ पुनिया, पूर्व केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ॰ सत्य नारायण जटिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सम्प्रति राज्य सभा सांसद श्री रामविलास पासवान, दिल्ली विधान सभा उपाध्यक्ष श्री अमरीश सिंह गौतम, त्रिपुरा के शिक्षा मंत्री श्री अनिल सरकार, महाराष्ट्र के पूर्व समाज कल्याण मंत्री व सम्प्रति विधायक श्री बबनराव घोलप, आर॰ पी॰ आई॰ के अध्यक्ष व पूर्व सांसद श्री रामदास अठावले, गोवा विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर श्री शंभुभाऊ बांडेकर, गुरु जम्भेश्वर तकनीकी यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ॰ एम॰ एल॰ रंगा, झांसी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो॰ रमेश चन्द्र, दिल्ली की मेयर प्रो॰ रजनी अब्बी एवं लखनऊ के पूर्व मेयर डॉ दाऊजी गुप्ता सहित तमाम साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी,पत्रकार इत्यादि उपस्थित थे। इस सम्मेलन में देश के सभी प्रान्तों और संघ शासित प्रदेश के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। विदेशों से नेपाल, अमेरिका, ब्रिटेन, मारिशस, श्रीलंका इत्यादि देशों के प्रतिनिधियों ने भी शिरकत की ।

गोवर्धन यादव
संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म0प्र0)-480001

गुरुवार, दिसंबर 15, 2011

आकांक्षा यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चिर ब्लागर आकांक्षा यादव को ‘’डाॅ0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो / पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं. व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ , ‘सप्तरंगी प्रेम’ ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. 'क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं. श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’ , अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि. जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा 'राष्ट्रीय भाषा रत्न' इत्यादि शामिल हैं.

आकांक्षा यादव को इस सम्मान-उपलब्धि पर हार्दिक बधाइयाँ !!

प्रस्तुति - शब्द साहित्य : रत्नेश कुमार मौर्य

बुधवार, नवंबर 16, 2011

नन्हीं प्रतिभा को सलाम : अक्षिता को 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार'

(बाल दिवस, 14 नवम्बर पर विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में महिला और बाल विकास मंत्री माननीया कृष्णा तीरथ जी ने अक्षिता (पाखी) को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2011 से पुरस्कृत किया. अक्षिता इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की प्रतिभा है.यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया)



आज के आधुनिक दौर में बच्चों का सृजनात्मक दायरा बढ़ रहा है. वे न सिर्फ देश के भविष्य हैं, बल्कि हमारे देश के विकास और समृद्धि के संवाहक भी. जीवन के हर क्षेत्र में वे अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं. बेटों के साथ-साथ बेटियाँ भी जीवन की हर ऊँचाइयों को छू रही हैं. ऐसे में वर्ष 1996 से हर वर्ष शिक्षा, संस्कृति, कला, खेल-कूद तथा संगीत आदि के क्षेत्रों में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले बच्चों हेतु हेतु महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' आरम्भ किये गए हैं। चार वर्ष से पन्द्रह वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चे इस पुरस्कार को प्राप्त करने के पात्र हैं.

वर्ष 2011 के लिए 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा प्रदान किये गए. विभिन्न राज्यों से चयनित कुल 27 बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए, जिनमें मात्र 4 साल 8 माह की आयु में सबसे कम उम्र में पुरस्कार प्राप्त कर अक्षिता (पाखी) ने एक कीर्तिमान स्थापित किया. गौरतलब है कि इन 27 प्रतिभाओं में से 13 लडकियाँ चुनी गई हैं।




सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री और पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा अक्षिता (पाखी) को यह पुरस्कार कला और ब्लागिंग के क्षेत्र में उसकी विलक्षण उपलब्धि के लिए दिया गया है. इस अवसर पर जारी बुक आफ रिकार्ड्स के अनुसार- ''25 मार्च, 2007 को जन्मी अक्षिता में रचनात्मकता कूट-कूट कर भरी हुई है। ड्राइंग, संगीत, यात्रा इत्यादि से सम्बंधित उनकी गतिविधियाँ उनके ब्लाॅग ’पाखी की दुनिया (http://pakhi-akshita.blogspot.com/) पर उपलब्ध हैं, जो 24 जून, 2009 को आरंभ हुआ था। इस पर उन्हें अकल्पनीय प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। 175 से अधिक ब्लाॅगर इससे जुडे़ हैं। इनके ब्लाॅग 70 देशों के 27000 से अधिक लोगों द्वारा देखे गए हैं। अक्षिता ने नई दिल्ली में अप्रैल, 2011 में हुए अंतर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में 2010 का ’हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना का सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार’ भी जीता है।इतनी कम उम्र में अक्षिता के एक कलाकार एवं एक ब्लाॅगर के रूप में असाधारण प्रदर्शन ने उन्हें उत्कृष्ट उपलब्धि हेतु 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, 2011' दिलाया।''इसके तहत अक्षिता को भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया.

यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है और इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को इस गौरवमयी उपलब्धि पर ढेरों प्यार और शुभाशीष व बधाइयाँ !!
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मंत्री जी भी अक्षिता (पाखी) के प्रति अपना प्यार और स्नेह न छुपा सकीं, कुछ चित्रमय झलकियाँ....














बुधवार, नवंबर 09, 2011

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को अब 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार'


प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. तभी तो पाँच वर्षीया नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को वर्ष 2011 हेतु राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (National Child Award) के लिए चयनित किया गया है. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री अक्षिता को यह पुरस्कार 'कला और ब्लागिंग' (Excellence in the Field of Art and Blogging) के क्षेत्र में शानदार उपलब्धि के लिए बाल दिवस, 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीर्थ जी द्वारा प्रदान किया जायेगा. इसके तहत अक्षिता को 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र दिया जायेगा.

यह प्रथम अवसर होगा, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया जायेगा. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है. फ़िलहाल अक्षिता पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा हैं और उनके इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को इस गौरवमयी उपलब्धि पर अनेकोंनेक शुभकामनायें और बधाइयाँ !!

शनिवार, सितंबर 24, 2011

हिंदी-ब्लागिंग का 'युवा-मन': अमित कुमार यादव

हिंदी-ब्लागिंग जगत में कुछेक नाम ऐसे हैं, जो बिना किसी शोर-शराबे के हिंदी साहित्य और हिंदी ब्लागिंग को समृद्ध करने में जुटे हुए हैं. इन्हीं में से एक नाम है- सामुदायिक ब्लॉग "युवा-मन" के माडरेटर अमित कुमार यादव का. संयोगवश आज उनका जन्मदिन भी है. अत: जन्म-दिन की बधाइयों के साथं आज की यह पोस्ट उन्हीं के व्यक्तित्व के बारे में-



अमित कुमार यादव : 24 सितम्बर, 1986 को तहबरपुर, आजमगढ़ (उ.प्र.) के एक प्रतिष्ठित परिवार में श्री राम शिव मूर्ति यादव एवं श्रीमती बिमला यादव के सुपुत्र-रूप में जन्म। आरंभिक शिक्षा बाल विद्या मंदिर, तहबरपुर-आजमगढ़, आदर्श जूनियर हाई स्कूल, तहबरपुर-आजमगढ़, राष्ट्रीय इंटर कालेज, तहबरपुर-आजमगढ़ एवं तत्पश्चात इलाहाबाद वि.वि. से 2007में स्नातक और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) से 2010 में लोक प्रशासन में एम.ए.। फ़िलहाल अध्ययन के क्रम में इलाहाबाद और प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी।

अध्ययन और लेखन अभिरुचियों में शामिल. सामाजिक-साहित्यिक-सामयिक विषयों पर लिखी पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं पढने का शगल, फिर वह चाहे प्रिंटेड हो या अंतर्जाल पर। तमाम पत्र-पत्रिकाओं , पुस्तकों/संकलनों एवं वेब-पत्रिकाओं, ई-पत्रिकाओं और ब्लॉग पर रचनाएँ प्रकाशित। वर्ष 2005 में 'आउटलुक साप्ताहिक पाठक मंच' का इलाहाबाद में गठन और इसकी गतिविधियों के माध्यम से सक्रिय। जुलाई-2006 में प्रतिष्ठित हिंदी पत्रिका 'आउटलुक' द्वारा एक प्रतियोगिता में पुरस्कृत, जो कि शैक्षणिक गतिविधियों से परे जीवन का प्रथम पुरस्कार। ब्लागिंग में भी सक्रियता और सामुदायिक ब्लॉग "युवा-मन" (http://yuva-jagat.blogspot.com) के माडरेटर। 21 दिसंबर 2008 को आरंभ इस ब्लॉग पर 250 के करीब पोस्ट प्रकाशित और 110 से ज्यादा फालोवर।
अपने बारे में स्वयं अमित कुमार एक जगह लिखते हैं, मूलत: आजमगढ़ का ...जी हाँ वही आजमगढ़ जिसकी पहचान राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय "हरिऔध", शिबली नोमानी, कैफी आज़मी जैसे लोगों से रही है। पर इस संक्रमण काल में इस पहचान के बारे में न ही पूछिये तो बेहतर है। आजकल आजमगढ़ की चर्चा दूसरे मुद्दों को लेकर है। फ़िलहाल हमने अभी तो जीवन के रंग देखने आरम्भ किये हैं, आगे-आगे देखिये होता क्या है। नौजवानी है सो जोश है, हौसला है और विचार हैं।

ई-मेलः amitky86@rediffmail.com
ब्लॉग : http://yuva-jagat.blogspot.com/ (युवा-मन)



(चित्र में : हिंदी भवन, दिल्ली में 'हिंदी साहित्य निकेतन', परिकल्पना डाट काम, और नुक्कड़ डाट काम द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मलेन में श्रेष्ठ नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) की तरफ से उत्तरांचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक', वरिष्ठ साहित्यकार डा. रामदरश मिश्र, डा. अशोक चक्रधर इत्यादि द्वारा सम्मान ग्रहण करते अमित कुमार यादव)

प्रस्तुति : रत्नेश कुमार मौर्य : 'शब्द-साहित्य'

गुरुवार, सितंबर 15, 2011

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में हिन्दी-दिवस का आयोजन

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक डाक सेवा कार्यालय में हिन्दी-दिवस का आयोजन किया गया। चर्चित साहित्यकार और निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और पारंपरिक द्वीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम के आरंभ में अपने स्वागत भाषण में सहायक डाक अधीक्षक श्री ए. के़. प्रशान्त ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर किया कि निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव स्वयं हिन्दी के सम्मानित लेखक और साहित्यकार हैं, ऐसे में द्वीप-समूह में राजभाषा हिन्दी के प्रति लोगों को प्रवृत्त करने में उनका पूरा मार्गदर्शन मिल रहा है। हिन्दी की कार्य-योजना पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर, 1949 को सर्वसम्मति से हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया था, तब से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर जोर दिया गया कि राजभाषा हिंदी अपनी मातृभाषा है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए और बहुतायत में प्रयोग करना चाहिए। इस अवसर पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए निदेशक डाक सेवाएँ और चर्चित साहित्यकार साहित्यकार व ब्लागर श्री कृष्ण कुमार यादव ने हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाने पर जोर दिया। अंडमान-निकोबार में हिन्दी के बढ़ते कदमों को भी उन्होंने रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमें हिन्दी से जुड़े आयोजनों को उनकी मूल भावना के साथ स्वीकार करना चाहिए। स्वयं डाक-विभाग में साहित्य सृजन की एक दीर्घ परम्परा रही है और यही कारण है कि तमाम मशहूर साहित्यकार इस विशाल विभाग की गोद में अपनी काया का विस्तार पाने में सफल रहे हें। इनमें प्रसिद्ध साहित्यकार व ‘नील दर्पण‘ पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय तमिल उपन्यासकार पी0वी0अखिलंदम, राजनगर उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अमियभूषण मजूमदार, फिल्म निर्माता व लेखक पद्मश्री राजेन्द्र सिंह बेदी, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी, सुविख्यात उर्दू समीक्षक शम्सुररहमान फारूकी, शायर कृष्ण बिहारी नूर जैसे तमाम मूर्धन्य नाम शामिल रहे हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी के पिता अजायबलाल भी डाक विभाग में ही क्लर्क रहे।

निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने अपने उद्बोधन में बदलते परिवेश में हिन्दी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला और कहा कि- भूमण्डलीकरण के दौर में दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र, सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र और सबसे बडे़ उपभोक्ता बाजार की भाषा हिन्दी को नजर अंदाज करना अब सम्भव नहीं रहा। आज की हिन्दी ने बदलती परिस्थितियों में अपने को काफी परिवर्तित किया है। विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर तमाम विषयों पर हिन्दी की किताबें अब उपलब्ध हैं, पत्र-पत्रिकाओं का प्रचलन बढ़ा है, इण्टरनेट पर हिन्दी की बेबसाइटों और ब्लॉग में बढ़ोत्तरी हो रही है, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने हिन्दी भाषा में परियोजनाएं आरम्भ की हैं। निश्चिततः इससे हिन्दी भाषा को एक नवीन प्रतिष्ठा मिली है। मनोरंजन और समाचार उद्योग पर हिन्दी की मजबूत पकड़ ने इस भाषा में सम्प्रेषणीयता की नई शक्ति पैदा की है पर वक्त के साथ हिन्दी को वैश्विक भाषा के रूप में विकसित करने हेतु हमें भाषाई शुद्धता और कठोर व्याकरणिक अनुशासन का मोह छोड़ते हुए उसका नया विशिष्ट स्वरूप विकसित करना होगा अन्यथा यह भी संस्कृत की तरह विशिष्ट वर्ग तक ही सिमट जाएगी। श्री यादव ने जोर देकर कहा कि साहित्य का सम्बन्ध सदैव संस्कृति से रहा है और हिन्दी भारतीय संस्कृति की अस्मिता की पहचान है। निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषन को मूल......आज वाकई इस बात को अपनाने की जरूरत है।इस अवसर पर निदेशक डाक सेवा कार्यालय के कार्यालय सहायक श्री किशोर वर्मा ने कहा कि आज हिन्दी भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपनी पताका फहरा रही है और इस क्षेत्र में सभी से रचनात्मक कदमों की आशा की जाती है। इस अवसर पर डाकघर के कर्मचारियों में हिंदी के प्रति सुरुचि जाग्रति करने के लिए दिनांक 14.9.11 से 28.9.11 तक विभिन्न प्रतियोगिताएं की जा रही हैं जैसे, श्रुतलेख, भाषण, हिन्दी टंकण, पत्र लेखन,हिन्दी निबंध, परिचर्चा। इस कार्यक्रम में प्रायः डाक विभाग के सभी कर्मचारी भाग ले रहें है।








बुधवार, अगस्त 10, 2011

प्रशासन और साहित्य का अदभुत संगम : कृष्ण कुमार यादव


प्रशासनिक सेवा में रहकर चिन्तन मनन करना एवं साहित्यिक लेखन करना अपने आप में एक विशिष्ट उपलब्धि है। राजकीय सेवा के दायित्वों का निर्वहन और श्रेष्ठ कृतियों की सर्जना का यह मणि-कांचन योग विरले ही मिलता है। कृष्ण कुमार यादव इस विरल योग के ही प्रतीक हैं। सम्प्रति आप भारतीय डाक सेवा के अधिकारी के रूप में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन के अलावा उनके कृतित्व में एक काव्यसंकलन "अभिलाषा" सहित दो निबंध-संकलन "अभिव्यक्तियों के बहाने" तथा "अनुभूतियाँ और विमर्श" एवं संपादित कृति "क्रांति-यज्ञ" का प्रकाशन शामिल है. इसके अलावा भारतीय डाक पर अंग्रेजी में लिखी उनकी पुस्तक ''India Post : 150 Glorious Years'' काफी चर्चित रही है. विभिन्न संकलनों में इनकी रचनाएँ सुशोभित हैं तो आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर, पोर्टब्लेयर से समय-समय पर कविताओं, सामयिक लेख, वार्ता का भी प्रसारण होता रहा है. अंतर्जाल पर 'शब्द सृजन की ओर', 'डाकिया डाक लाया' और 'आजमगढ़ ब्लागर्स एसोसिएशन' ब्लॉग का सञ्चालन भी कर रहे हैं।

श्री यादव के इस बहुआयामी व्यक्तित्व के चलते ही उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर "बाल साहित्य समीक्षा (संपादक : डा0 राष्ट्रबंधु, कानपुर)" व "गुफ्तगू (संपादक : मुo गाजी, इलाहाबाद)" पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी किये गए हैं तो शोधार्थियों हेतु व्यक्तित्व-कृतित्व पर इलाहाबाद से "बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव" (सं0- दुर्गाचरण मिश्र) पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है. श्री यादव को साहित्य विरासत की बजाय आत्मान्वेषण और आत्मभिव्यक्ति के संघर्ष से प्राप्त हुआ है। निरन्तर सजग होते आत्मबोध ने उनकी विलक्षण रचनाधर्मिता को प्रखरता और सोद्देश्यता से सम्पन्न किया है। उनकी रचनाओं में मात्र कोरी बौद्धिकता नहीं, जीवन सम्बन्धी आत्मीय अनुभूतियाँ हैं, संवेदनात्मक संस्पर्श हैं, सामाजिक संचेतना है, समय की जटिलताओं के मध्य भावों की संप्रेषणीयता है। सारगर्भित, सुन्दर, सुस्पष्ट व सार्थक रूप में इन रचनाओं में जीवन की लय है, विचार हैं, प्रभान्विति है, जिसके चलते अपनी रचनाओं में श्री यादव विषय-वस्तुओं का यथार्थ विशेलषण करते हुये उनका असली चेहरा पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। बकौल पद्मभूषण गोपाल दास ‘नीरज‘ -‘‘कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ कवि हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं।’’



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आज कृष्ण कुमार जी का जन्म-दिन है. कृष्ण कुमार जी को जन्मदिन पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं! आने वाला प्रत्येक नया दिन, आपके , आकांक्षा जी, अक्षिता (पाखी) और तन्वी के जीवन में अनेकानेक सफलताएँ एवं अपार खुशियाँ लेकर आए! इस अवसर पर ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह, वैभव, ऐश्वर्य, उन्नति, प्रगति, आदर्श, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि और समृद्धि के साथ सपरिवार, आजीवन आपको जीवन पथ पर गतिमान रखे !!

शनिवार, जुलाई 30, 2011

रचनाधर्मिता के पैमाने पर आकांक्षा यादव

ब्लागिंग-जगत में बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो एक साथ ही प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर छप रहे हैं. इन्हीं में से एक नाम है-आकांक्षा यादव जी का. आकांक्षा जी कॉलेज में प्रवक्ता के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लाॅगिंग के क्षेत्र में भी उतनी ही प्रवृत्त हैं।

इण्डिया टुडे, कादम्बिनी, नवनीत, साहित्य अमृत, वर्तमान साहित्य, अक्षर पर्व, अक्षर शिल्पी, युगतेवर, आजकल, उत्तर प्रदेश, मधुमती, हरिगंधा, पंजाब सौरभ, हिमप्रस्थ, दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, स्वतंत्र भारत, राजस्थान पत्रिका, वीणा, अलाव, परती पलार, हिन्दी चेतना (कनाडा), भारत-एशियाई साहित्य, शुभ तारिका, राष्ट्रधर्म, पांडुलिपि, नारी अस्मिता, चेतांशी, बाल भारती, बाल वाटिका, गुप्त गंगा, संकल्य, प्रसंगम, पुष्पक, गोलकोंडा दर्पण इत्यादि शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आकांक्षा यादव अंतर्जाल पर भी उतनी ही सक्रिय हैं. विभिन्न वेब पत्रिकाओं- अनुभूति, सृजनगाथा, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, वेब दुनिया हिंदी, रचनाकार, ह्रिन्द युग्म, हिंदीनेस्ट, हिंदी मीडिया, हिंदी गौरव, लघुकथा डाट काम, उदंती डाट काम, कलायन, स्वर्गविभा, हमारी वाणी, स्वतंत्र आवाज डाट काम, कवि मंच, इत्यादि पर आपकी रचनाओं का प्रकाशन निरंतर होता रहता है. विकिपीडिया पर भी आपकी तमाम रचनाओं के लिंक उपलब्ध हैं।

अपने व्यक्तिगत ब्लॉग 'शब्द-शिखर' के साथ-साथ पतिदेव कृष्ण कुमार जी के साथ युगल रूप में बाल-दुनिया, सप्तरंगी प्रेम, उत्सव के रंग ब्लॉगों का सञ्चालन उन्हें अग्रणी महिला ब्लागरों की पंक्ति में खड़ा करता है. इसके अलावा भी वे तमाम ब्लॉगों से जुडी हुयी हैं.

30 जुलाई, 1982 को सैदपुर, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मीं और सम्प्रति भारत के सुदूर अंडमान में हिंदी ब्लागिंग की पताका फहरा रहीं आकांक्षा जी न सिर्फ हिंदी को लेकर सचेत हैं बल्कि इसके प्रचार-प्रसार में भी भूमिका निभा रही हैं. दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों/ संकलनों में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं तो आकाशवाणी से भी रचनाएँ तरंगित होती रहती हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श और सामाजिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर आप प्रमुखता से लेखन कर रही हैं. कृष्ण कुमार जी के साथ "क्रांति-यज्ञ:1857-1947 की गाथा" पुस्तक का संपादन कर चुकीं आकांक्षा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चित बाल-साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित "बाल साहित्य समीक्षा (कानपुर)" पत्रिका ने विशेषांक भी जारी किया है।


विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु उन्हें दर्जनाधिक सम्मान, पुरस्कार और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं. भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार सहित तमाम सम्मान शामिल हैं. आकांक्षा जी के पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव भी चर्चित साहित्यकार और ब्लागर हैं, वहीँ इस दंपत्ति की पुत्री अक्षिता (पाखी) भी 'पाखी की दुनिया' के माध्यम से अभिव्यक्त होती रहती है. सहजता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति आकांक्षा यादव अपनी रचनाधर्मिता के बारे में कहती हैं कि-'' मैंने एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास किया है. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी की शक्ति है.''

आशा की जानी चाहिए कि आकांक्षा जी यूँ ही अपने लेखन में धार बनाये रखें, निरंतर लिखती-छपती रहें और हिंदी साहित्य और ब्लागिंग को समृद्ध करती रहें.

जन्म-दिन पर असीम शुभकामनाओं सहित...!!

गुरुवार, जुलाई 14, 2011

हमारा भी जन्म-दिन आ गया...


लीजिये जी, आज हमारा जन्म-दिन है. आप सबके लिए यह केक हमारी तरफ से. इसे खाएं और जन्मदिन की बधाई देना ना भूलें !!

मंगलवार, जून 28, 2011

कृष्ण कुमार यादव के संपादन में प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' का लघुकथा विशेषांक अंडमान में लोकार्पित

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘चेतना’ के तत्वाधान में स्वर्गीय सरस्वती सिंह की 11 वीं पुण्यतिथि पर 26 जून, 2011 को मेगापोड नेस्ट रिसार्ट में आयोजित एक कार्यक्रम में देहरादून से प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' पत्रिका के लघुकथा विशेषांक का विमोचन किया गया. इस अवसर पर ''बदलते दौर में साहित्य के सरोकार'' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री एस. एस. चौधरी, प्रधान वन सचिव, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, अध्यक्षता देहरादून से पधारे डा. आनंद सुमन 'सिंह', प्रधान संपादक-सरस्वती सुमन एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, डा. आर. एन. रथ, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर एवं डा. जयदेव सिंह, प्राचार्य टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर उपस्थित रहे. कार्यक्रम का आरंभ पुण्य तिथि पर स्वर्गीय सरस्वती सिंह के स्मरण और तत्पश्चात उनकी स्मृति में जारी पत्रिका 'सरस्वती सुमन' के लघुकथा विशेषांक के विमोचन से हुआ. इस विशेषांक का अतिथि संपादन चर्चित साहित्यकार और द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवा श्री कृष्ण कुमार यादव द्वारा किया गया है. अपने संबोधन में मुख्य अतिथि एवं द्वीप समूह के प्रधान वन सचिव श्री एस.एस. चौधरी ने कहा कि सामाजिक मूल्यों में लगातार गिरावट के कारण चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई है । >ऐसे में साहित्यकारों को अपनी लेखनी के माध्यम से जन जागरण अभियान शुरू करना चाहिए । उन्होंने कहा कि आज के समय में लघु कथाओं का विशेष महत्व है क्योंकि इस विधा में कम से कम शब्दों के माध्यम से एक बड़े घटनाक्रम को समझने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि देश-विदेश के 126 लघुकथाकारों की लघुकथाओं और 10 सारगर्भित आलेखों को समेटे सरस्वती सुमन के इस अंक का सुदूर अंडमान से संपादन आपने आप में एक गौरवमयी उपलब्धि मानी जानी चाहिए.

युवा साहित्यकार एवं निदेशक डाक सेवा श्री कृष्ण कुमार यादव ने बदलते दौर में लघुकथाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि भूमण्डलीकरण एवं उपभोक्तावाद के इस दौर में साहित्य को संवेदना के उच्च स्तर को जीवन्त रखते हुए समकालीन समाज के विभिन्न अंतर्विरोधों को अपने आप में समेटकर देखना चाहिए एवं साहित्यकार के सत्य और समाज के सत्य को मानवीय संवेदना की गहराई से भी जोड़ने का प्रयास करना चाहिये। श्री यादव ने समाज के साथ-साथ साहित्य पर भी संकट की चर्चा की और कहा कि संवेदनात्मक सहजता व अनुभवीय आत्मीयता की बजाय साहित्य जटिल उपमानों और रूपकों में उलझा जा रहा है, ऐसे में इस ओर सभी को विचार करने की जरुरत है.

संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए डा. जयदेव सिंह, प्राचार्य टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में समग्रता के स्थान पर सीमित सोच के कारण उन विषयों पर लेखन होने लगा है जिनका सामाजिक उत्थान और जन कल्याण से कोई सरोकार नहीं है । केंद्रीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के निदेशक डा. आर. सी. श्रीवास्तव ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आज बड़े पैमाने पर लेखन हो रहा है लेकिन रचनाकारों के सामने प्रकाशन और पुस्तकों के वितरण की समस्या आज भी मौजूद है । उन्होंने समाज में नैतिकता और मूल्यों के संर्वधन में साहित्य के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला । डा. आर. एन. रथ, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय ने अंडमान के सन्दर्भ में भाषाओँ और साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि यहाँ हिंदी का एक दूसरा ही रूप उभर कर सामने आया है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य का एक विज्ञान है और यही उसे दृढ़ता भी देता है.अंडमान से प्रकाशित एकमात्र साहित्यिक पत्रिका 'द्वीप लहरी' के संपादक डा. व्यास मणि त्रिपाठी ने ने साहित्य में उभरते दलित विमर्श, नारी विमर्श, विकलांग विमर्श को केन्द्रीय विमर्श से जोड़कर चर्चा की और बदलते दौर में इसकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया. उन्होंने साहित्य पर हावी होते बाजारवाद की भी चर्चा की और कहा कि कला व साहित्य को बढ़ावा देने के लिए लोगों को आगे आना होगा। पूर्व प्राचार्य डा. संत प्रसाद राय ने कहा कि कहा कि समाज और साहित्य एक सिक्के के दो पहलू हैं और इनमें से यदि किसी एक पर भी संकट आता है, तो दूसरा उससे अछूता नहीं रह सकता।

कार्यक्रम के अंत में अपने अध्यक्षीय संबोधन में ‘‘सरस्वती सुमन’’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक डाॅ0 आनंद सुमन सिंह ने पत्रिका के लघु कथा विशेषांक के सुन्दर संपादन के लिए श्री कृष्ण कुमार यादव को बधाई देते हुए कहा कि कभी 'काला-पानी' कहे जानी वाली यह धरती क्रन्तिकारी साहित्य को अपने में समेटे हुए है, ऐसे में 'सरस्वती सुमन' पत्रिका भविष्य में अंडमान-निकोबार पर एक विशेषांक केन्द्रित कर उसमें एक आहुति देने का प्रयास करेगी. उन्होंने कहा कि सुदूर विगत समय में राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम घटनाएं घटी हैं और साहित्य इनसे अछूता नहीं रह सकता है। अपने देश में जिस तरह से लोगों में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अनुराग बढ़ रहा है, वह चिन्ताजनक है एवं इस स्तर पर साहित्य को प्रभावी भूमिका का निर्वहन करना होगा। उन्होंने रचनाकरों से अपील की कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य समाज के निर्माण में अपनी रचनात्मक भूमिका निभाएं। इस अवसर पर डा. सिंह ने द्वीप समूह में साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए और स्व. सरस्वती सिंह की स्मृति में पुस्तकालय खोलने हेतु अपनी ओर से हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।

कार्यक्रम के आरंभ में संस्था के संस्थापक महासचिव दुर्ग विजय सिंह दीप ने अतिथियों और उपस्थिति का स्वागत करते हुए आज के दौर में हो रहे सामाजिक अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की । कार्यक्रम का संचालन संस्था के उपाध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने किया और संस्था की निगरानी समिति के सदस्य आई.ए. खान ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर विभिन्न द्वीपों से आये तमाम साहित्यकार, पत्रकार व बुद्धिजीवी उपस्थित थे.

प्रस्तुति : दुर्ग विजय सिंह दीप
संयोजक- 'चेतना' (सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था)
उपनिदेशक- आकाशवाणी (समाचार अनुभाग)
पोर्टब्लेयर -744102

सोमवार, मई 09, 2011

वर्ष की श्रेष्ठ नन्हीं ब्लागर अवार्ड बनीं अक्षिता (पाखी) ..'निशंक' ने दिया सम्मान

नन्हीं ब्लॉगर अक्षिता यादव 'पाखी' को श्रेष्ठ नन्हीं ब्लॉगर के लिए 'हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान-2010' अवार्ड दिया गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, हिंदी कवि एवं साहित्यकार अशोक चक्रधर, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामदरश मिश्र, प्रभाकर श्रोत्रिय जैसे साहित्यकारों की उपस्थिति में 30 अप्रैल को हिंदी भवन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मलेन में हिंदी साहित्य निकेतन, परिकल्पना डॉट कॉम और नुक्कड़ डॉट कॉम की त्रिवेणी ने हिंदी ब्लॉगिंग के उत्थान में अविस्मरणीय योगदान के लिए और भी 51 हिंदी ब्लॉगरों को यह सम्मान दिया। सबसे कम उम्र की अक्षिता पाखी का नाम इस सूची में सबसे ऊपर था। इन सभी को स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र, पुस्तकें और एक निश्चित धनराशि भी दी गई।

कानपुर में 25 मार्च 2007 को जन्मी अक्षिता इस समय पोर्टब्लेयर में कार्मेल स्कूल में केजी में पढ़ती है। अक्षिता का ब्लॉग 24 जून 2009 को 'पाखी की दुनिया' http://www.pakhi-akshita.blogspot.com नाम से अस्तित्व में आया। इस ब्लॉग पर उसने अन्य विषयों के साथ-साथ अंडमान के बारे में भी काफी जानकारियां और फोटोग्राफ पोस्ट किए हैं, जिन्हें यूजर्स काफी उत्सुकता से पढ़ते और सराहते हैं। इस ब्लॉग पर 150 से भी ज्यादा पोस्ट प्रकाशित हो चुकी हैं और 140 से ज्यादा लोग इसका अनुसरण करते हैं। ब्लॉग का संचालन अक्षिता के माता-पिता करते हैं। अक्षिता के पिता कृष्ण कुमार यादव अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएं हैं और माँ आकांक्षा यादव उत्तर प्रदेश में एक कॉलेज में प्रवक्ता हैं।

दिल्ली से प्रकाशित अनेक समाचार पत्रों ने अक्षिता के लिए लिखा है कि अक्षिता बहुत छोटी है, लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग में वह एक जाना-पहचाना नाम बन चुकी है। उसका ब्लॉग बेहद लोकप्रिय है और फिलहाल हिंदी के टॉप 100 ब्लॉगों में से एक है। अक्षिता की तस्वीर बच्चों की एक पुस्तक के कवर पर भी छप चुकी है। इससे पूर्व अक्षिता पाखी को लोकसंघर्ष-परिकल्पना और लखनऊ ब्लॉगर्स एसोसिएशन के सह प्रायोजित ब्लॉगोत्सव-2010 में प्रकाशित रचनाओं की श्रेष्ठता के आधार पर वर्ष 2010 के लिए श्रेष्ठ नन्हीं ब्लॉगर का पुरस्कार मिल चुका है। अक्षिता सम्मान ग्रहण करने नहीं पहुंच सकी, इसलिए यह सम्मान उसके चाचा अमित कुमार यादव ने ग्रहण किया। मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, नन्हीं ब्लॉगर को यह पुरस्कार देते हुए उत्सुकता और भारी प्रसन्नता व्यक्त की।




मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

राम राम शिव मूर्ति यादव को ‘अम्बेडकर रत्न अवार्ड 2011‘ सम्मान

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित चारबाग के रवीन्द्रालय सभागार में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में प्रखर लेखक एवं समाज सेवी श्री राम शिव मूर्ति यादव को ‘अम्बेडकर रत्न अवार्ड 2011‘ से सम्मानित किया गया। उक्त समारोह में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष श्री रामदास आठवले ने श्री यादव को यह सम्मान प्रदान किया एवं अम्बेडकरवादी साहित्य को प्रोत्साहित करने एवं तत्संबंधी लेखन हेतु उनके कार्य-कलापों की प्रशंसा करते हुए उसे समाज के लिए अनुकरणीय बताया। इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के 120 अम्बेडकरवादियों को सम्मानित किया गया।

उत्तर प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत्ति पश्चात तहबरपुर-आजमगढ़ जनपद निवासी श्री राम शिव मूर्ति यादव एक लम्बे समय से शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक विषयों पर प्रखरता से लेखन कर रहे हैं। श्री यादव की ‘सामाजिक व्यवस्था एवं आरक्षण‘ नाम से एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। आपके तमाम लेख विभिन्न स्तरीय पुस्तकों और संकलनों में भी प्रकाशित हैं। इसके अलावा आपके लेख इंटरनेट पर भी तमाम चर्चित वेब/ई/ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं और ब्लाग्स पर पढ़े-देखे जा सकते हैं। श्री राम शिव मूर्ति यादव ब्लागिंग में भी सक्रिय हैं और ”यदुकुल” (www.yadukul.blogspot.com) ब्लॉग का आप द्वारा 10 नवम्बर 2008 से सतत संचालन किया जा रहा है।

इससे पूर्व आपको भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने सामाजिक न्याय सम्बन्धी लेखन एवं समाज सेवा के लिए ‘’ज्योतिबाफुले फेलोशिप सम्मान-2007‘‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ, इलाहाबाद ने विशिष्ट कृतित्व एवं समृद्ध साहित्य-साधना हेतु ‘‘भारती ज्योति’’ सम्मान एवं आसरा समिति, मथुरा ने ‘बृज गौरव‘, म0प्र0 की प्रतिष्ठित संस्था ‘समग्रता‘ शिक्षा साहित्य एवं कला परिषद, कटनी ने हिन्दी साहित्य सेवा के आधार पर वर्ष 2010 के लिए रचनात्मक क्षेत्र में सेवाओं के निमित्त ”भारत-भूषण“ की मानद उपाधि से अलंकृत किया है।

गोवर्धन यादव
संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म0प्र0)-480001

सोमवार, अप्रैल 18, 2011

एक युवा रचनाधर्मी का सतत मूल्यांकन

साहित्य और साहित्यकार दोनों एक ही नव निर्माण प्रक्रिया के दो पहलू होते हैं। इस दृष्टि से किसी भी साहित्यकार के कृतित्व के अध्ययन के लिए उसके व्यक्तित्व का अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि सर्जक व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक घटनाएँ जैसे पूर्व संस्कार, बचपन के संस्कार, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक इत्यादि का कलाकार एवं सर्जक के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति अगर साहित्यकार हो तो उसके कृतित्व में किसी न किसी रूप में उसके व्यक्तित्व की झलक स्पष्ट दिखाई दे जाती है। इन स्थितियों के लिये तत्कालीन देश, काल एवं वातावरण की अहम् भूमिका होती है। दुर्गाचरण मिश्र द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ को इसी परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की आवश्यकता है।

33 वर्षीय युवा कृष्ण कुमार यादव भारतीय डाक सेवा के उच्च पदस्थ अधिकारी हैं, कवि हैं, कहानीकार हैं, निबंधकार हैं, बाल साहित्यकार हैं, संपादन कला में भी दक्ष हैं। अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ वह प्रकृति-प्रेमी, पर्यटक, समाजसेवी, स्वाध्याय प्रेमी, संगीत श्रोता, स्नेही मित्र और कुशल प्रशासक भी हैं। उनके लिए साहित्य मात्र उत्सवधर्मिता का परिचायक नहीं बल्कि उसके माध्यम से वे जीवन के रंगों और उसमें व्याप्त आनंद की खोज व अन्वेषण करते हैं। अपने इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण कृष्ण कुमार अपनी जीवन-संगिनी आकांक्षा के वरेण्य बने हुए हैं। बेटी के प्रति वात्सल्य-वर्षण में दम्पति युग्म प्रतिस्पर्धी है। कृष्ण कुमार का व्यक्तित्व पिताश्री की कर्तव्यनिष्ठा, अध्ययन, अभिरुचि, लेखन का अभ्यास, लक्ष्य प्राप्ति हेतु अथक प्रयास तथा सरलमना ममतामयी माँ के उत्सर्ग-परायण अन्तःकरण का सुखद समन्वय प्रतीत होता है। उनका प्रियदर्शन व्यक्तित्व सर्वाधिक आकर्षक एवं सम्मोहक है। प्रसाद जी की पंक्ति याद आती है- हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया उन्मुक्त।

‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ में कृष्ण कुमार के समग्र साहित्यिक कृतित्व का मूल्यांकन किया गया है। विद्वान समीक्षकों ने विभिन्न विधाओं में सृजित श्री यादव की रचनाओं की मुक्तकण्ठ से सराहना की है। उनकी रचनाओं में सामाजिक सरोकारों की प्रतिबद्धता, परिवारिक रिश्तों की मिठास, भारतीय संस्कृति के प्रेरक आदर्श, दलितों-शोषितों के प्रति सहज सहानुभूति, ममतामयी नारी के उदात्त एवं दयनीय जीवन के विविध रूप, बाल-मन की सरलता-तरलता, राष्ट्र की अस्मिता-रक्षा हेतु प्राणोत्सर्ग करने वाले क्रान्तिवीरों के प्रति प्रणति, भ्रष्टाचार को नकारने का उद्दाम आक्रोश, उपलब्धियों की बुलन्दियों पर पहुँचने का अदम्य उत्साह और इन सबसे परे उनका मानवतावादी जीवन-दर्शन यत्र-तत्र-सर्वत्र लक्षित होता है। उनकी कविताएंँ, कहानियाँ, निबन्ध, बाल साहित्य, इतिहास लेखन सभी उनकी संवेदनशीलता, वैचारिक उत्कर्ष, ओजपूर्ण मनस्विता एवं मानवतावादी जीवन-दर्शन का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। पुस्तक के सुधी संपादक साहित्यकार दुर्गा चरण मिश्र के द्वारा कृष्ण कुमार यादव के बहुआयामी व्यक्तित्व पर आधारित मूल्यांकनपरक आलेखों, विद्वतजनों की सार्थक टिप्पणियों एवं श्री यादव की जीवन-गाथा सहेजती अट्ठासी छन्दों में विस्तारित कविता द्वारा इसे पठनीय एवं संग्रहणीय बनाने का प्रयास निःसंदेह सराहनीय है। प्रस्तुत पुस्तक कृष्ण कुमार यादव के प्रति समर्पित महत्वपूर्ण महानुभावों की भाव-सुमनांजलि से सुवासित है।

‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ में कृष्ण कुमार यादव की रचनाओं के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों की सम्मतियाँ उल्लेखनीय हैं। ये सम्मतियाँ उनकी रचनाधर्मिता के साथ-साथ व्यक्तित्व को भी विस्तार देती हैं। पुस्तक की भूमिका में प्रसिद्ध समालोचक सेवक वात्स्यायन लिखते हैं कि कृष्ण कुमार यादव अपने जीवन के अभी पूरे-पूरे तीन दशक ही देख सके हैं कि उनकी मेधा और निष्ठामय श्रम के उदात्त उदाहरण व्यवहारवादी जीवन-दर्शन से लेकर, सिद्धान्त-भूमियों से लेकर भावमय संसार तक प्रस्थित हो उठे हैं। उन्होंने साहित्य-जगत् में भी विविध आयामों में, विविध सोपानों में अपनी प्रतिभा-राशि का आंशिक और समुच्चयित किरण-विकीर्णन प्रस्तुत कर चमत्कृत भी किया है और भावाभिभूत भी। जानेमाने गीतकार व साहित्यकार गोपालदास ‘नीरज‘, कृष्ण कुमार यादव की रचनाओं में बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व संतुलन महसूस करते हंै तो प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित के मत में कृष्ण कुमार के पास पर्याप्त भाव-सम्पदा है, जागृत संवेदना है, सक्षम काव्य-भाषा है और खुला आकाश है। डाॅ0 रामदरश मिश्र का अभिमत है कि कृष्ण कुमार की कविताएं सहज हैं, पारदर्शी हैं, अपने समय के सवालों और विसंगतियों से रूबरू हैं। चर्चित कवि यश मालवीय श्री यादव को उनके विभाग की भावभूमि से जोड़ते हुए लिखते हैं कि वास्तव में अपने रचना-कर्म में कृष्ण कुमार चिट्ठीरसा ही लगते हैं, जीवन और जगत को भावनाओं कल्पनाओं की रसभीनी चिट्ठी इधर से उधर पहुँचाते हुए। डाॅ0 गणेश दत्त सारस्वत उनकी निबंध-कला पर जोर देते हुए कहते हैं कि- कृष्ण कुमार के निबन्ध अनुभूतिपरक हैं, चिन्तन प्रधान हंै तथा दार्शनिकता का पुट लिए हुए हैं इसलिए सर्वस्पर्शी हैं। इससे परे डाॅ0 रामस्वरूप त्रिपाठी श्री यादव की रचनाओं में विमर्शों को खंगालते हुए व्यक्त करते हैं कि-स्त्री-विमर्श का यथार्थ, दलित चेतना की सोच कृष्ण कुमार की कविताओं में वर्तमान का सत्य बनकर उभरी हैं। वरिष्ठ कथाकार गोवर्धन यादव के मत में कृष्ण कुमार की कहानियों में प्रेम की मासूमियत, अन्तद्र्वन्द्व, व्यवस्था की विसंगतियाँ व समसामयिक घटनाओं के बहाने समकालीन सरोकारों को भी उकेरा गया है। आकांक्षा यादव तो रचनाधर्मिता को श्री यादव के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग रूप में देखती हैं। रविनंदन सिंह इसे आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं कि युवा कवि कृष्ण कुमार यादव ने नारी चेतना को आधुनिक संदर्भों से जोड़कर ग्रहण किया है। श्री यादव की रचनाओं पर साहित्यकारों की ही नहीं समाजसेवियों और राजनेताओं की भी दृष्टि गयी है। बतौर केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल-‘क्रान्ति यज्ञ‘ एक पुस्तक नहीं, बल्कि अपने आप में एक शोध ग्रन्थ है।

‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘ में कृष्ण कुमार यादव के जन्म से लेकर आज तक के 32 वर्षीय विकास-क्रम को शब्द-शिल्प से सजाया गया है। कृष्ण कुमार की कलम विद्यार्थी जीवन से ही चलने लगी। ‘हम नवोदय के बच्चे‘ बाल गीत से आरम्भ हुआ उनका काव्य सृजन कब और कैसे बढ़ता गया पता ही नहीं चला। कभी कल्पनाओं में, कभी प्रकृति के सौंदर्य तो कभी जीवन की सच्चाईयों व बहुरंगे अनुभवों से गुजरती हुई कविता इलाहाबाद में अध्ययन के दौरान गद्य की ओर भी उन्मुख हुई। नवोदय विद्यालय का अल्हड़ किशोर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान देश-विदेश की गतिविधियों में रूचि लेने वाला जागरूक युवा छात्र बनकर उभरता है। पिताश्री के सपनों को साकार करने हेतु सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में डूब जाता है और अपने आत्म-विश्वास के अनुरूप प्रथम प्रयास में ही सफलता अर्जित कर भारतीय डाक सेवा का उच्चाधिकारी बनता है। साहित्य-सृजन के लिए कलम उठाता है तो अल्पावधि में ही भारत की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में बहार बनकर छा जाता है। जीवन-संगिनी मिलती है वह भी कलम की सिपहसालार। ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्ण कुमार ने जो भी सपना देखा, परमात्मा ने उसे अविलम्ब साकार कर दिया। उनकी बतरस की बाँसुरी से ऐसी मधुर एवं सुरीली स्वर लहरी प्रवाहित होती है कि श्रोता के पास रससिक्त होने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं बचता।

कभी-कभी लगता है जैसे कृष्ण कुमार अपने नाम को सार्थक करने की आकांक्षा से प्रतिपल अनुप्राणित हैं। जीवन और जगत की विसंगतियों से टक्कर लेने की संवेदनशील छटपटाहट है। पुस्तक के संपादक दुर्गाचरण मिश्र जी ने कृष्ण कुमार यादव की रचनाओं के पृष्ठ भी इसके साथ संलग्न कर लिए होते, तो एक नयी काव्य-विधा का ‘कुमार कृष्णायन‘ बनकर तैयार हो जाता। खैर, महाभारत जैसी रचनाएं तो शनैः शनैः अपना आकार-विस्तार प्राप्त करती हैं। अन्त में मैं कृष्ण कुमार यादव के कृतित्व को अपनी भाव-सुमनांजलि अर्पित करते हुए एक श्लोक उद्धृत करने की अनुमति चाहता हूँ।

जयन्ति ते सृकृतिनः रससिद्धाः

यशःकाये जरामरणजं भयम्।।

कृतिः बढ़ते चरण शिखर की ओर सम्पादकः दुर्गाचरण मिश्र, पृष्ठः 148 मूल्यः रू0 150 संस्करणः 2009 प्रकाशकः उमेश प्रकाशन, 100, लूकरगंज, इलाहाबाद समीक्षकः राजकुमार अवस्थी, प्रधानाचार्य (से0नि0), नरवल, कानपुर-209401

शुक्रवार, अप्रैल 01, 2011

नारी , NAARI: लिंगानुपात बढ़ा पर बच्चियों की स्थिति अभी भी शर्मस...

नारी , NAARI: लिंगानुपात बढ़ा पर बच्चियों की स्थिति अभी भी शर्मस...: "जनगणना के प्रारम्भिक आंकड़ों के मुताबिक आपने देश भारत की आबादी बढ़ कर 121 करोड़ हो गई है। दस साल पहले हुई गणना के मुकाबले यह 17.64 फीसदी ज्याद..."

मंगलवार, मार्च 15, 2011

महिलाओं के योगदान को मान्यता प्रदान करना जरुरी- कृष्ण कुमार यादव

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ (8 मार्च) पर पोर्टब्लेयर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारम्भ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाए एवं चर्चित साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव ने दीप जलाकर किया। श्री यादव ने अपने उदबोधन में कहा कि - ‘‘नारी ही सृजन का आधार है और इसके विभिन्न रूपों को पहचानने की जरूरत है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस इस तथ्य को उजागर करता है कि विश्व शान्ति और सामाजिक प्रगति को कायम रखने तथा मानवाधिकार और मूलभूत स्वतंत्रता को पूर्णरूप से हासिल करने के लिए महिलाओं की सक्रिय भागीदारी, समानता और उनके विकास के साथ-साथ महिलाओं के योगदान को मान्यता प्रदान करना भी अपेक्षित है।‘‘ संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि एवं युवा लेखिका सुश्री आकांक्षा यादव ने महिला सशक्तीकरण को सिर्फ उपमान नहीं बल्कि एक धारदार हथियार बताया। बदलते परिवेश में समाज में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि महिलाएं आज राजनीति, प्रशासन, समाज, संगीत, खेल-कूद, मीडिया, कला, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, ब्लागिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अन्तरिक्ष सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है. सदियों से समाज ने नारी को पूज्या बनाकर उसकी देह को आभूषणों से लाद कर एवं आदर्शों की परंपरागत घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का कार्य किया, पर नारी की शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-ब-दिन खुलते जा रहे हैं, जिससे तमाम नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा हैं।

पोर्टब्लेयर प्रधान डाकघर की पोस्टमास्टर श्रीमती एम. मरियाकुट्टी ने कहा कि-'' संविधान में महिला सशक्तीकरण के अनेक प्रावधान हैं पर दूरदराज और ग्रामीण स्तर तक भी लोगों को उनके बारे में जागरुक करने की जरूरत है। सुश्री सुप्रभा ने इस अवसर पर नारी की भूमिका के अवमूल्यन के लिए विज्ञापनों और चन्द फिल्मों को दोषी ठहराया जो नारी को एक उत्पाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं। सुश्री शांता देब ने कहा कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ भगवान वास करते हैं, फिर भी नारी के प्रति समाज का रवैया दोयम है। सुश्री जयरानी ने उन महिलाओं पर प्रकाश डाला जो उपेक्षा के बावजूद समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल हुईं। इसके अलावा अन्य तमाम लोगों ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन जयरानी ने किया और आभार शांता देब ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में तमाम महिलाएं और प्रबुद्ध-जन उपस्थिति रहे।

बुधवार, मार्च 02, 2011

आकांक्षा यादव को 'न्यू ऋतंभरा भारत-भारती साहित्य सम्मान'

युवा कवयित्री एवँ साहित्यकार सुश्री आकांक्षा यादव को हिन्दी साहित्य में प्रखर रचनात्मकता एवँ अनुपम कृतित्व के लिए छत्तीसगढ़ की प्रमुख साहित्यिक संस्था न्यू ऋतंभरा साहित्य मंच, दुर्ग द्वारा ''भारत-भारती साहित्य सम्मान-2010'' से सम्मानित किया गया है। गौरतलब है कि सुश्री आकांक्षा यादव की आरंभिक रचनाएँ दैनिक जागरण और कादम्बिनी में प्रकाशित हुई और फ़िलहाल वे देश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवँ सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली सुश्री आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनों/पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय सुश्री आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं।

आपकी तमाम रचनाओं के लिंक विकिपीडिया पर भी दिए गए हैं। 'शब्द-शिखर', 'सप्तरंगी-प्रेम', 'बाल-दुनिया' और 'उत्सव के रंग' ब्लॉग आप द्वारा संचालित/सम्पादित हैं। 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' पुस्तक का संपादन करने वाली सुश्री आकांक्षा के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. राष्ट्रबन्धु जी ने ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में प्रवक्ता सुश्री आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहाँ रहकर भी हिन्दी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिन्दी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

सुश्री आकांक्षा यादव को इससे पूर्व भी विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवँ कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि इत्यादि प्रमुख हैं। सुश्री आकांक्षा यादव को इस अलंकरण हेतु हार्दिक बधाईयाँ।

गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)-480001

मंगलवार, मार्च 01, 2011

कवित्व

चली चर्चा एक बार कवित्व पर
कि ‘कविता क्या होती है?
किसी ने कहा कि
‘कविता’ कवि का भाव है
‘कवि के विचारों का
क्रमात्मक बहाव है’
किसी ने सराहा कि
‘कवि अपने दर्द को
कागज पर उकेरता है’
अपने खुशी भरें पलो को
अंलकारों और रसों से संवार कर
लेखनी की उन्मत् चाल से
शब्दों को वाक्यों में पिरोकर
कागज पर सहेजता है
वह जो समाज में देखता है
उसे ही ढ़ालकर आइने में
समाज को आईना दिखाता है
कवि अपने कल्पना रूपी पंखो से
लेखनी की थिरकन पर
वहाँ पहुँच जाता है !!


एस. आर. भारती

गुरुवार, फ़रवरी 10, 2011

कृष्ण कुमार यादव को डा0 अम्बेडकर फेलोशिप अवार्ड-2010

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव को अपने रजत जयंती वर्ष में ‘’डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2010‘‘ से सम्मानित किया है। श्री यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। श्री कृष्ण कुमार यादव वर्तमान में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर कार्यरत हैं.

सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय 33 वर्षीय श्री कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को देश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में देखा-पढा जा सकता हैं। विभिन्न विधाओं में अनवरत प्रकाशित होने वाले श्री यादव की अब तक कुल 5 पुस्तकें- अभिलाषा (काव्य संग्रह), अभिव्यक्तियों के बहाने (निबन्ध संग्रह), अनुभूतियां और विमर्श (निबन्ध संग्रह) और इण्डिया पोस्टः 150 ग्लोरियस ईयर्स, क्रान्ति यज्ञः 1857 से 1947 की गाथा प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डाॅ0 राष्ट्रबन्धु द्वारा श्री यादव के व्यक्तित्व व कृतित्व पर ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का विशेषांक जारी किया गया है तो इलाहाबाद से प्रकाशित ‘‘गुफ्तगू‘‘ पत्रिका ने भी श्री यादव के ऊपर परिशिष्ट अंक जारी किया है। शोधार्थियों हेतु आपके जीवन पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव‘‘ ( स0 डा0 दुर्गाचरण मिश्र) भी प्रकाशित हुई है। श्री यादव की रचनायें पचास से ज्यादा संकलनों में उपस्थिति दर्ज करा रहीं हैं और आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर और पोर्टब्लेयर से भी उनकी रचनाएँ और वार्ता प्रसारित हो चुके हैं. श्री कृष्ण कुमार यादव ब्लागिंग में भी सक्रिय हैं और ‘शब्द सृजन की ओर‘ और ‘डाकिया डाक लाया‘ नामक उनके ब्लॉग चर्चित हैं.

ऐसे विलक्षण व सशक्त, सारस्वत सुषमा के संवाहक श्री कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्वे विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान -2009‘‘, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा काव्य शिरोमणि-2009 एवं महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती रत्न‘‘, मध्य प्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, प्रतापगढ द्वारा '' विवेकानंद सम्मान'' , महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ''महिमा साहित्य भूषण सम्मान'' नगर निगम डिग्री कालेज, अमीनाबाद, लखनऊ द्वारा ‘‘सोहनलाल द्विवेदी सम्मान‘‘, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा ‘‘कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान‘‘ व ‘‘महाकवि शेक्सपियर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान‘‘, अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानोपाधि संस्थान, कुशीनगर द्वारा ‘‘राष्ट्रभाषा आचार्य‘‘ व ‘‘काव्य गौरव‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, दृष्टि संस्था, गुना द्वारा ‘‘अभिव्यक्ति सम्मान‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, आसरा समिति, मथुरा द्वारा ‘‘ब्रज गौरव‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मेधाश्रम संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘सरस्वती पुत्र‘‘, खानाकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती, ठाणे द्वारा ‘‘साहित्य विद्यावाचस्पति‘‘, उत्तराखण्ड की साहित्यिक संस्था देवभूमि साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, सृजनदीप कला मंच पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘सृजनदीप सम्मान‘‘, मानस मण्डल कानपुर द्वारा ‘‘मानस मण्डल विशिष्ट सम्मान‘‘, नवयुग पत्रकार विकास एसोसियेशन, लखनऊ द्वारा ‘‘साहित्यकार रत्न‘‘, महिमा प्रकाशन छत्तीसगढ़ द्वारा ‘‘महिमा साहित्य सम्मान‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘ व ’’अक्षर शिल्पी सम्मान’’, न्यू ऋतम्भरा साहित्यिक मंच, दुर्ग द्वारा ‘‘ न्यू ऋतम्भरा विश्व शांति अलंकरण‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना (म0प्र0) द्वारा ’’अक्षर शिल्पी सम्मान-2010’’ , साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ''हिंदी भाषा भूषण-2010'' इत्यादि तमाम सम्मानों से अलंकृत किया गया है। ऐसे युवा प्रशासक एवं साहित्य मनीषी कृष्ण कुमार यादव को इस सम्मान हेतु बधाईयाँ।

मंगलवार, फ़रवरी 08, 2011

वसंत पंचमी शुभ हो..


या कुंदेंदु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणावर दण्डमंडितकरा, या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा

हिंदी अनुवाद:
जो कुंद फूल, चंद्रमा और वर्फ के हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं
जिनके हाथ, श्रेष्ठ वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमल पर आसन ग्रहण करती हैं
ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिदेव, जिनकी सदैव स्तुति करते हैं
हे माँ भगवती सरस्वती, आप मेरी सारी (मानसिक) जड़ता को हरें

वसंत-पंचमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। माँ सरस्वती का आशीर्वाद आप सब पर बना रहे.

बुधवार, फ़रवरी 02, 2011

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पोर्टब्लेयर में कवि सम्मेलन

हिन्दी साहित्य कला परिषद, पोर्टब्लेयर द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर दक्षिण अंडमान के उप मंडलीय मजिस्ट्रेट श्री राजीव सिंह परिहार मुख्य अतिथि थे और कार्यक्रम की अध्यक्षता चर्चित युवा साहित्यकार और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने की. दूरदर्शन केंद्र पोर्टब्लेयर के सहायक निदेशक श्री जी0 साजन कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे. कार्यक्रम का शुभारम्भ द्वीप प्रज्वलन द्वारा हुआ.

इस अवसर पर द्वीप समूह के तमाम कवियों ने अपनी कविताओं से शमां बांधा, वहीँ तमाम नवोदित कवियों को भी अवसर दिया गया. एक तरफ देश-भक्ति की लहर बही, वहीँ समाज में फ़ैल रहे भ्रष्टाचार, महंगाई और अन्य बुराइयाँ भी कविताओं का विषय बनीं. कविवर श्रीनिवास शर्मा ने देश-भक्ति भरी कविता और द्वीपों के इतिहास को छंदबद्ध करते कवि सम्मलेन का आगाज किया. जगदीश नारायण राय ने संसद की स्थिति को शब्दों में ढलकर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया. जयबहादुर शर्मा ने महंगाई को इंगित किया तो उभरते हुए कवि ब्रजेश तिवारी ने गणतंत्र की महिमा गाई. डाॅ0 एम0 अयया राजू ने आज की राजनैतिक व्यवस्था पर कविता के माध्यम से गहरी चोट की तो डाॅ0 रामकृपाल तिवारी ने यह सुनकर सबको मंत्रनुग्ध कर दिया कि नेताओं के चलते 'तंत्र' ही बचा और 'गण' गायब हो गया. श्रीमती डी0 एम0 सावित्री ने कविताओं के सौन्दर्य बोध को उकेरा तो डाॅ0 व्यासमणि त्रिपाठी ने ग़ज़लों से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया. अन्य कवियों में संत प्रसाद राय, अनिरूद्ध त्रिपाठी, बी0 के0 मिश्र, राजीव कुमार तिवारी, सदानंद राय, एस0 के0 सिंह, रामसिद्ध शर्मा, रामसेवक प्रसाद, परशुराम सिंह, डाॅ0 मंजू नायर एवं श्रीमती रागिनी राय ने अपने काव्य पाठ द्वारा काव्य संध्या को यादगार शाम बना दिया। मुख्य अतिथि श्री राजीव सिंह परिहार ने भी हिन्दी कविता की आस्वादन प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए स्वरचित कविताओं का पाठ किया।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए चर्चित युवा साहित्यकार और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने सामाजिक परिवर्तन में कविता की क्रांतिकारी भूमिका की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। आज के लेखन में राष्ट्रीय चेतना की कमी और राष्ट्रीयता के विलुप्त होने की प्रवृत्ति के भाव पर रचनाकारों को सचेत करते हुए उन्होंने कविता को प्रभावशाली बनाने पर जोर दिया। श्री यादव ने जोर देकर कहा कि कविता स्वयं की व्याख्या भी करती है एवं बहुत कुछ अनकहा भी छोड़ देती है। इस अनकहे को ढूँढ़ने की अभिलाषा ही एक कवि-मन को अन्य से अलग करती है। ऐसे में साहित्यकारों और कवियों का समाज के प्रति दायित्व और भी बढ़ जाता है. उन्होंने परिषद द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन की सराहना करते हुए कहा कि मुख्यभूमि से कटे होने के बावजूद भी यहाँ जिस तरह हिंदी सम्बन्धी गतिविधियाँ चलती रहती हैं, वह प्रशंसनीय है.

कार्यक्रम के आरम्भ में परिषद के अध्यक्ष श्री आर0 पी0 सिंह ने उपस्थिति का स्वागत किया, जबकि प्रधान सचिव श्री बी0 क0 मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कवि सम्मेलन का संयोजक एवं संचालन हिंदी साहित्य कला परिषद् के साहित्य सचिव डाॅ0 व्यासमणि त्रिपाठी ने किया।

डाॅ0 व्यासमणि त्रिपाठी
साहित्य सचिव- हिंदी साहित्य कला परिषद्, पोर्टब्लेयर-744101
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह.