मंगलवार, मार्च 15, 2011

महिलाओं के योगदान को मान्यता प्रदान करना जरुरी- कृष्ण कुमार यादव

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ (8 मार्च) पर पोर्टब्लेयर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारम्भ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाए एवं चर्चित साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव ने दीप जलाकर किया। श्री यादव ने अपने उदबोधन में कहा कि - ‘‘नारी ही सृजन का आधार है और इसके विभिन्न रूपों को पहचानने की जरूरत है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस इस तथ्य को उजागर करता है कि विश्व शान्ति और सामाजिक प्रगति को कायम रखने तथा मानवाधिकार और मूलभूत स्वतंत्रता को पूर्णरूप से हासिल करने के लिए महिलाओं की सक्रिय भागीदारी, समानता और उनके विकास के साथ-साथ महिलाओं के योगदान को मान्यता प्रदान करना भी अपेक्षित है।‘‘ संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि एवं युवा लेखिका सुश्री आकांक्षा यादव ने महिला सशक्तीकरण को सिर्फ उपमान नहीं बल्कि एक धारदार हथियार बताया। बदलते परिवेश में समाज में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि महिलाएं आज राजनीति, प्रशासन, समाज, संगीत, खेल-कूद, मीडिया, कला, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, ब्लागिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अन्तरिक्ष सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है. सदियों से समाज ने नारी को पूज्या बनाकर उसकी देह को आभूषणों से लाद कर एवं आदर्शों की परंपरागत घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का कार्य किया, पर नारी की शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-ब-दिन खुलते जा रहे हैं, जिससे तमाम नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा हैं।

पोर्टब्लेयर प्रधान डाकघर की पोस्टमास्टर श्रीमती एम. मरियाकुट्टी ने कहा कि-'' संविधान में महिला सशक्तीकरण के अनेक प्रावधान हैं पर दूरदराज और ग्रामीण स्तर तक भी लोगों को उनके बारे में जागरुक करने की जरूरत है। सुश्री सुप्रभा ने इस अवसर पर नारी की भूमिका के अवमूल्यन के लिए विज्ञापनों और चन्द फिल्मों को दोषी ठहराया जो नारी को एक उत्पाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं। सुश्री शांता देब ने कहा कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ भगवान वास करते हैं, फिर भी नारी के प्रति समाज का रवैया दोयम है। सुश्री जयरानी ने उन महिलाओं पर प्रकाश डाला जो उपेक्षा के बावजूद समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल हुईं। इसके अलावा अन्य तमाम लोगों ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन जयरानी ने किया और आभार शांता देब ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में तमाम महिलाएं और प्रबुद्ध-जन उपस्थिति रहे।

बुधवार, मार्च 02, 2011

आकांक्षा यादव को 'न्यू ऋतंभरा भारत-भारती साहित्य सम्मान'

युवा कवयित्री एवँ साहित्यकार सुश्री आकांक्षा यादव को हिन्दी साहित्य में प्रखर रचनात्मकता एवँ अनुपम कृतित्व के लिए छत्तीसगढ़ की प्रमुख साहित्यिक संस्था न्यू ऋतंभरा साहित्य मंच, दुर्ग द्वारा ''भारत-भारती साहित्य सम्मान-2010'' से सम्मानित किया गया है। गौरतलब है कि सुश्री आकांक्षा यादव की आरंभिक रचनाएँ दैनिक जागरण और कादम्बिनी में प्रकाशित हुई और फ़िलहाल वे देश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवँ सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली सुश्री आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनों/पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय सुश्री आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं।

आपकी तमाम रचनाओं के लिंक विकिपीडिया पर भी दिए गए हैं। 'शब्द-शिखर', 'सप्तरंगी-प्रेम', 'बाल-दुनिया' और 'उत्सव के रंग' ब्लॉग आप द्वारा संचालित/सम्पादित हैं। 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' पुस्तक का संपादन करने वाली सुश्री आकांक्षा के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. राष्ट्रबन्धु जी ने ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में प्रवक्ता सुश्री आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहाँ रहकर भी हिन्दी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिन्दी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

सुश्री आकांक्षा यादव को इससे पूर्व भी विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवँ कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि इत्यादि प्रमुख हैं। सुश्री आकांक्षा यादव को इस अलंकरण हेतु हार्दिक बधाईयाँ।

गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)-480001

मंगलवार, मार्च 01, 2011

कवित्व

चली चर्चा एक बार कवित्व पर
कि ‘कविता क्या होती है?
किसी ने कहा कि
‘कविता’ कवि का भाव है
‘कवि के विचारों का
क्रमात्मक बहाव है’
किसी ने सराहा कि
‘कवि अपने दर्द को
कागज पर उकेरता है’
अपने खुशी भरें पलो को
अंलकारों और रसों से संवार कर
लेखनी की उन्मत् चाल से
शब्दों को वाक्यों में पिरोकर
कागज पर सहेजता है
वह जो समाज में देखता है
उसे ही ढ़ालकर आइने में
समाज को आईना दिखाता है
कवि अपने कल्पना रूपी पंखो से
लेखनी की थिरकन पर
वहाँ पहुँच जाता है !!


एस. आर. भारती